मेरा नाम पंकज है, मेरी उम्र 25 साल है और मैं ऊना, हिमाचल का हूँ।
मेरी नौकरी लग गई और मुझे उसके लिए चण्डीगढ़ जाना पड़ा, चण्डीगढ़ में मेरे दूर का भाई संजय रहता है जो मुझसे 14 साल बड़ा है।
मैंने चण्डीगढ़ जाने से पहले ही उसे फ़ोन कर दिया तो वह मुझे स्टेशन पर लेने आया था, जब तक कोई और इंतजाम ना हो, मैंने उसी के घर रुकने का सोच रखा था।
स्टेशन पर संजय अपनी बेटी मीतू के साथ आया था। मीतू बहुत ही मांसल बदन की और सुन्दर है, उसका एक एक चूचा जैसे की ठूंस ठूंस कर कपड़ों में भरा हुआ था, मैंने उसे 10 साल पहले जब वह 9 साल की थी, तब देखा था, तब वह एक बच्ची थी और अब बच्चे पैदा कर सकने को तैयार !
मेरा लण्ड उसे देख कर पहली नजर में ही खड़ा हो गया था।
मुझे संजय के घर ठहरे एक सप्ताह हो गया था, मीतू से मैंने आँख-मिचौली कब से चालू कर दी थी और वह भी जब मुझे ऊपर मेरे कमरे में खाना देने आती या पानी का जग देने आती तो तिरछी नजर से देखती थी।
अक्सर शाम के वक्त मैं लंगोट के आकार के बरमूडा में ही होता था और उसके आते ही लण्ड बरमुडे का आकार ऊँचा कर देता था।
एक दिन हमारे बॉस की बीवी का जन्मदिन था और दफ़्तर का सारा स्टाफ पार्टी में जाने वाला था इसलिए बॉस ने सभी को तैयार होने के लिए लंच के वक्त ही छुट्टी कर दी।
मैं घर आ गया और देखा कि संजय और मीनल भाभी दिखाई नहीं दे रहे थे!
मैंने मीतू को तभी बरामदे पर अपने बाल झटकते देखा, वह अपनी लेमन नाईटी पहने बालों को तौलिये से झटक रही थी और शायद अंदर ब्रा नहीं पहनी हुई थी इसलिए उसके मांसल चूचे इधर उधर झूल रहे थे।
मेरा लौड़ा फ़ड़कने लगा।
मैं कुछ कहूँ उसके पहले ही मीतू बोल पड़ी- मम्मी डैडी नरेश अंकल के घर गए हैं, और देर रात तक लौटेंगे।
मेरे दिमाग में मीतू की चुदाई की योजना तभी बनने लगी और मेरा लौड़ा पैंट में करवटें बदलने लगा।
मैं मन ही मन मीतू की बुर को भोग लेने की योजना सोचते हुए अपने कमरे में जूते और कपड़े निकाल रहा था।
मैं अपने कपड़े उतार अपनी चड्डी में खड़े हुए मीतू के बारे में ही सोच कर अपने लण्ड के उपर हाथ फेर रहा था, मेरा लण्ड अकड़ कर खड़ा हुआ पड़ा था और हाथ फेरने से मजा आ रहा था।
तभी कमरे का दरवाजा धम्म से खुल गया और मीतू वहाँ पानी का गिलास लिए खड़ी थी।
मैं जैसे ही दरवाजे की तरफ पलटा, मैंने देखा की मीतू की नजर मेरे खड़े लौड़े पर ही थी।
उसके मुख से हंसी निकल गई और वह गिलास मेज पर रख कर नीचे चली गई।
पहले तो मुझे लगा कि वह डर गई लेकिन फिर मैंने सोचा कि उसकी हंसी बहुत शरारती थी, मैंने अपना सैल फ़ोन निकाला और बॉस को फोन किया- मेरे भाई साब की तबीयत ख़राब है, उन्हें लेकर अस्पताल जा रहा हूँ।
मुझे आज कुछ भी कर के मीतू की चूत में अपने मोटे लण्ड के झण्डे गाड़ने थे!
मैं नीचे आया, देखा कि मीतू रसोई में खाना गर्म कर रही थी।
मैं रसोई में घुसा और मैंने देखा कि मीतू अब भी होंठों में मुस्कुरा रही थी।
मैंने वाशबेसिन में हाथ धोने के बहाने बिल्कुल उससे सट कर लण्ड उसके चूतड़ों पर अड़ा दिया और हाथ धोए।
मीतू ने पलट कर मेरी तरफ देखा और मैं उसे स्माईल दे रहा था।
वह भी हंस पड़ी।
फिर क्या, अब तो हरा सिग्नल मिल गया था मुझे, केवल सही पटरी पर चलना था बस।
मैंने मीतू को कहा- मीतू, खाने में क्या बनाया है?
मीतू बोली- करेला आलू, अरहर की दाल और चावल-रोटी !
मैं हंसा और बोला- मुझे कभी रोटी बनानी नहीं आई और अब तो अच्छा रूम मिल गया तो खाना मुझे ही बनाना है कुछ दिनों में!
मीतू बोली- कोई बात नहीं चाचू, मैं आपको सिखा दूँगी बाद में!
मैंने कहा- बाद में क्यों? आज ही सिखा दो। मैं रोज रोज थोड़े ना दफ़्तर से जल्दी आ पाता हूँ।
मीतू अभी भी होंठों को दबाये मुस्कान दे रही थी, वह हाँ या ना कहे, उससे पहले मैंने अपने कमीज की बाहें चढ़ाई और मैं प्लेटफ़ार्म के पास जाकर खड़ा हुआ, मैंने मीतू के हाथ से बेलन लिया और चोकी पर रोटी बेलने लगा।
मुझे वैसे रोटी बनानी आती थी, बस मैं मीतू को घास डाल रहा था।
मीतू बोली- ऐसे नहीं, लाओ, मैं बताती हूँ।
मैंने कहा- मेरे हाथ यहीं रहने दो और बताओ।
मीतू ने बेलन के ऊपर रहे मेरे हाथ पर अपने हाथ रखे, उसके कंपन दे रहे हाथ उसकी मांसल जवानी में आई गरमाहट के आसार दे रहे थे।
उसके मांसल बड़े चूचे मेरी कमर से टकरा रहे थे और मेरा लण्ड इधर बौखलाता जा रहा था।
उसने मुझे रोटी बेलवाई पर मैंने इस दौरान कितनी बार उसकी उँगलियाँ दबाई और उसे अपने इरादे इसके द्वारा स्पष्ट किए।
मीतू ने उंगली हटाई नहीं और मैं समझा कि वह भी लण्ड खाने को तैयार है।
मैंने कहा- मीतू तुम आगे आओ, मैं देखता हूँ पीछे से!
मीतू आगे आ गई, मैंने पीछे से उसक%